लेखनी प्रतियोगिता - रात का डर
रात का डर
रात का डर ही कुछ ऐसा होता है,
सीधा खड़ा हुआ पेड़, कुछ और दिखता है,
कितना ही कोई बहादुर, क्यों न हो,
रात के अंधेरे में चलते हुए,
मन ही मन हनुमान चालीसा जपता है,
पर ये भी सच है, बुरा काम,
इसी अंधेरे में मुक्कमल होता है,
सारे लोगों को भ्रम रहता है,
कि अंधेरे में कोई नही देखता है,
रात के गहरे अंधेरे में, पहरेदार भी,
"जागते रहो" की आवाज लगाता है,
चारो और फैले डरावने सन्नाटे को,
वो अपनी आवाज के शोर से हराता है ।।
प्रियंका वर्मा
26/10/23
Gunjan Kamal
06-Nov-2023 07:59 PM
👏👌
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Mohammed urooj khan
06-Nov-2023 04:47 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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madhura
01-Nov-2023 04:00 PM
V nice
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